कुछ तेरे, कुछ मेरे मन में
ये तडप, ये कशिश क्यूं है ,
ये तडप, ये कशिश क्यूं है ,
रिश्तों की गलियो में
अभिमानों की ये साजिश क्यूं है ,
अभिमानों की ये साजिश क्यूं है ,
माटी के घरौंदे, रेत की किले,
जागीरे थी बचपन की,
जागीरे थी बचपन की,
मौकापरस्त हवाओ ने
बिखेरी फ़िजा में खलिश क्यूं है ,
बिखेरी फ़िजा में खलिश क्यूं है ,
तोतली जुबाँ औ दुधमुही हँसी पे बलिहारी जग था,
जग जितनें में रिश्तों के तर्पन की कोशिश क्यूं है ,
आधुनिकता की वेदी पर भेट चढाई विश्वास की थी,
छत गिरायी सहारे की, नैनो में रुकी बारिश क्यूं है ,
टूटे साजो के तार, बिखरे- बिखरे सुर जुडेंगे कैसे,
सुकून को दिया वनवास, अब शिकवा तपिश से क्यूं है ....
निशा मोटघरे
औरंगाबाद, महाराष्ट्र
औरंगाबाद, महाराष्ट्र
एक टिप्पणी भेजें