जो
मैं न रहूं आज
तो
क्या, करोगे
मुझे याद?
सोचती
हूँ कई बार
कि
क्या
है तुम्हारी ज़िंदगी में
मेरा
होना, ना
होना?
क्या
है मेरा
तुम्हारे
मन पर असर?
क्या
होगे कभी बेचैन
मिलने
को मुझसे?
क्या
आएगी मेरी सूरत
तुम्हारे
ज़ेहन में कभी?
नाम...
कहीं
भुला तो न दोगे मेरा?
कभी
सामने दिख जाऊँ
तो
पहचान तो लोगे?
जो
हाँ हो जवाब
इन
सबका,
तो
खुश हूँ मैं इस बेरुखी से भी।
कि
भूले भटके कहीं
चाह
ही लो मुझे,
मांग
ही बैठो अनजाने में
कहीं
साथ मेरा,
कर
ही लो कहीं मोहब्बत मुझसे,
कि
उम्मीदें मेरी
दामन
छोडती नहीं मेरा,
कि
यक़ीन है तुम पर
उस
ख़ुदा से भी ज़्यादा।
जूही शहाब
(मधेपुरा) पुणे.
बहुत सुंदर भाव