जब तुम
थकान से आकुल-व्याकुल
थकान से आकुल-व्याकुल
पुकारते हो उसे
शांति और सुकून की छाँह.
अपेक्षित क्षुधा की तृप्ति के लिए
तब वह माँ बन जाती है.
मन में उमड़ते संघर्षों
विमर्शों के शमन हेतु
चाहते हो कोई साथ
वह मित्र बन तुम्हे संभालती है.
कभी बहन बन तुम्हारे दुखों को
आँचल में संभालती
तुम्हारी मुस्कान बन जाती है.
अपने नन्हे हाथों से , मचलती
गोद में आने की जिद करती
बिटिया भी वही
दुनिया की भीड़ से अलग
अपने मधुमय एकांत में
पत्नी बन तुम्हे दुलारती नारी
कदम से कदम
मिलाती जिंदगी के
ऊँचे-नीचे रास्तों पर
वह पत्नी, प्रिया, बहन,बेटी
कितने रूपों में जीती है एक साथ
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