ना कानून का डर
ना दुनिया का.
राजनीति की विसाख
पर बैठा मैं चोर हूँ.

महंगाई ने पंख फैलायी
दुनिया में कहर बरपाया.

बिना खर्चा नहीं निकलता एक भी पर्चा
भ्रष्टाचार का है ये आलम
सब पैसे को समझते हैं अपना जानम.

मनरेगा को कर दिया विकलांग
जे.सी.बी. से होता सब काम.

शिक्षा व्यवस्था लड़खड़ाई
खिचड़ी में जा के समाई.

बेरोजगारी ने ऐसी दंश मारी
दिन को भी तारे दिखलाई.

ऐसा बेवकूफ बनाया
जाति- पाति में उलझाया.

लोगों को चूना लगाकर
खुद का पायजामा बनवाया.
पहने खादी टोपी कहलाये “नेता”.


दीपक यादव (मधेपुरा, बिहार, इंडिया)

0 Responses

एक टिप्पणी भेजें