कुछ इस तरह बुनेंगे
हम अपने देश की तकदीर
कि हर मुल्क मेरे वतन
की तामील करेगा
ये हम नहीं करेंगे
तो फिर कौन करेगा ?
बेच न डाले मिट्टी देश की
ये प्यासी हुकूमत
हर हद की हद को तोड़ती
ये भूखी सियासत
ऐसे में अपने आँखों के
ख़्वाबों की हिफाज़त
गर हम नहीं करेंगेतो फिर कौन करेगा ?
हर आँगन को मिले बादलऔर एक टुकड़ा धूप भी
ऋचाएँ गूँजे वेद की और कोयल की कूक भी
ना आये किसी केघर में आहट भी भूख की
ये हम नहीं करेंगेतो फिर कौन करेगा ?
हर चूल्हे को मिले सौंधी-सौंधी साँवली रोटी
हर बच्चे को मिले हरेक रात चाँद सी रोटी
बेचे न कोई बचपन जब खरीदनी हो एक रोटी
ये हम नहीं करेंगे तो फिर कौन करेगा ?
कुछ इस तरह बुनेंगे हम अपने देश की तकदीर
कि हर मुल्क मेरे वतन की तामील करेगा
ये हम नहीं करेंगे तो फिर कौन करेगा ?
कल्याणी कबीर
जमशेदपुर
बिलकुल ठीक कहा आपने। ये हमें, हम सबों को करना होगा क्योंकि ये देश ना इसका है, ना उसका है, हम सबका है..नहीं समझी जो ये बात तो नुकसान पक्का है. . .