यदि सिखाए
गरीबों की आह
सुनो
धर्म यदि सिखाए
अपनों ही नहीं
सबके दर्द को
महसूस करो
तो ही धर्म कर्म
हो.
बगल में भूखे
बच्चे
गरीबी में
जिंदगी मौत सी जी
रहे
और तुम धर्म की
बातें
करो..........
न सुनाई दे
तुम्हें कोई आह
तो यकीन मानो
तुम्हें सीखनी
चाहीए
परिभाषा धर्म की.
और बदलनी चाहीए
तुम्हें रूप-रेखा
कर्म की .
राकेश सिंह (मधेपुरा, बिहार, इंडिया)
बिलकुल ठीक कहा है आपने गुरूजी।