दोपहर का समय था, मैं भोजन कर लेटा हुआ था, मेरे घर के सामने एक टैक्सी रुकी, मैं बाहर आया एक व्यक्ति एक टोकरी लेकर मेरे पास आया उसके पीछे- पीछे एक युवती थी. उसने चरण स्पर्श किया और बोली गुरुदेव, मैं हूँ ममता गोराई, मैंने आशीर्वाद देते हुए कहा अरे, तुम अचानक कहाँ से प्रकट हो गई ? युवती ने हँसते हुए कहा- गुरु जी, आप वैसे ही हैं. आपका चिर परिचित लहजा सुनकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई, उसने कहा ये कुछ फल हैं, कृपया स्वीकार करें कुछ फल क्या थे फलों का अम्बार था, संतरे, सेब, कई किलो अंगूर, सूखे फलों का एक बड़ा पैकेट ममता ने अपनी राम कहानी बिना किसी भूमिका के प्रारम्भ की - बी ए के पश्चात मैंने आपकी सलाह से हिंदी टाइपिंग सीखी. मैं हिंदी टाइपिस्ट बनना चाहती थी, आपने कहा रेलवे में हिंदी अधिकारी पद का विज्ञापन निकला है, आवेदन कर दो और तयारी करो, मैंने आवेदन किया आपने दो महीनो तक हिंदी साहित्य का इतिहास और सामान्य ज्ञान पढ़ाया. मैं डर रही थी बोली- परीक्षा से मुझे डर लग रहा है. मैं अस्थायी टाइपिस्ट बनने जा रही हूँ. 
                         आप नाराज हो गए बोले मुर्खे, मैंने इसीलिए तुम्हारे साथ इतना परिश्रम किया, पद अनुसूचित जन जाति के लिए सुरक्षित है. तुम्हारी तैयारी है, परीक्षा में बैठो नहीं तो मेरे पास कभी मत आना - मैंने परीक्षा दी- मेरा चुनाव हो गया, मेरी नियुक्ति गोवाहाटी में हो गई, दो वर्षों के बाद आई, तो आपका निवास बदल गया था. पिताजी भी सेवा निवृत होकर बुंडू चले गए थे. भाई वहीँ दुकान चलाता है. तब से मैं आपका पता बराबर खोज रही थी, एक ऑन लाइन पत्रिका से आपका पता मिला, मैं बुंडू आई थी, दौड़ी दौड़ी आपको सरप्राइज़ देने आ गई, फिर उसने चरण पकड़ कर पूछा -अब तो आप नाराज नहीं हैं न ? मैंने भरे कंठ से कहा- बेटा वह मेरा सात्विक क्रोध था, गुरु शिष्य से कभी नाराज नहीं होता. 


डॉ बच्चन पाठक 'सलिल' 

1 Response
  1. Jyoti khare Says:

    सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर ----

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों
    कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------


एक टिप्पणी भेजें