तुम्हें जीना
सिखा दूंगी
घुल गयी जो तुम्हारी
सांसो
में तो यक़ीनन
तुम्हारी सांसो
को महका दूंगी.
हाँ मैं जिन्दगी
हूँ
तुम्हें जीना
सीखा दूंगी
थाम लूंगी
तुम्हारे हाथों को इक बार
तुम्हें दुनिया
को जीतना सीखा दूंगी.
इक बार चली जो..
तुम्हारे साथ
यक़ीनन
तुम्हारी राहो को
आसान बना दूंगी.
हाँ मैं जिन्दगी
हूँ
तुम्हें जीना
सीखा दूंगी.
तुम्हे डर हैं
आसमान की उचाईयों से
तुम्हे डर है
समंदर की गहराइयों से
इक बार मुझे तुम
खुद में
शामिल तो करो
यक़ीनन
डर सारे दिल के मिटा
दूंगी.
हाँ मैं जिन्दगी
हूँ.
तुम्हें जीना
सीखा दूंगी.
कभी जो तनहाइयाँ
तुम्हे घेरेंगी
मैं गले से
तुम्हे लगा लूंगी
होटों पर मुझको
सजा लेना यक़ीनन
उदासियो में
चुपके से मुस्कुरा दूंगी.
हाँ मैं जिन्दगी
हूँ
तुम्हें जीना
सीखा दूंगी.
कभी जो उलझनों
में उलझे तो
मुश्किलो से लड़ना
सिखा दूंगी.
दोस्त बना लो तुम
जो मुझे यक़ीनन
मैं दुश्मनो को
भी दोस्त बना दूंगी.
हाँ मैं जिन्दगी
हूँ
तुम्हे जीना सीखा
दूंगी.
सुषमा ‘आहुति’ (लेक्चरर, कानपुर)
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