आजकल मैं राजनीति की,
दलाली करता हूँ.
दोस्तों से सख्त नफरत है;
दुश्मनों की नमक हलाली करता हूँ,
ईमानदारी से उसकी जेब खाली करता हूँ.
यह राज आज पड़ोसी क्या?
मेरी घरवाली भी नहीं जानती है.
जानकर भी क्या वह ख़ाक समझेगी?
वह तो मुझे लल्लू पति मानती है.
जीता हूँ, मस्ती में,
आग लगाता हूँ बस्ती में.
दौड़-दौड़कर पानी फेंकता हूँ,
और स्वार्थ की रोटी सेंकता हूँ.
कमजोरी का जो लाभ उठाता है,
वही सफल दलाल बनता है.
अक्ल से दोस्ती जब होती है,
तभी माल बनता है.
पी० बिहारी ‘बेधड़क’
कटाक्ष कुटीर, महाराजगंज
मधेपुरा.
एक टिप्पणी भेजें