सच कहती हूँ जो लिखती हूँ,
अपने दिल के तार सजाती हूँ.
सच कहती हूँ, प्यार लिखती हूँ.
जब से तुझको अपना माना
जब से तुझसे स्नेह लगाया
हर दम चाही तेरी खुशियाँ
हर सांस में साथ तुम्हारा.
सच कहती हूँ हँस पड़ती हूँ
जब याद आती है पहली मुलाकातें
और प्यार भरी वो बातें
क्या खूब सजाये सपने हमने.
क्या खूब साथ निभाया आपने
सच कहती हूँ जो लिखती हूँ.
अब तो तेरे प्यार में ही जीती-मरती हूँ.
सच कहती हूँ हँस पड़ती हूँ
जब तू मेरे सपने से हकीकत में आता है
और प्यार सजाते-सजाते हम लड़ पड़ते हैं.
सच कहती हूँ जो लिखती हूँ,
कभी-कभी तुम मुझे जब रूलाते हो,
मैं तो जैसे सहम सी जाती हूँ
पर सच कहती हूँ
अपनी हर सांस में सिर्फ तुम्हें जीती हूँ.
तुम हँस पड़ोगे जब ये जानोगे,
मैं क्या-क्या सपने सजाती हूँ.
तुम्हारे प्यार में कभी-कभी तो
खुद को दुल्हन बनी मैं पाती हूँ.
सच कहती हूँ जो लिखती हूँ,
ना जाने क्या-क्या ख्वाब सजाती हूँ,
कभी-कभी तो सपने में ही
अपनी सारी दुनियां पा लेती हूँ.
पर सच कहती हूँ अब जो लिखती हूँ
तुम्हारे साथ से ही हूँ मैं जिन्दा,
सच कहती हूँ जिस दिन मेरा साथ
छोड़े तुम शायद फिर मुझे तुम
देख ही न पाओ जिन्दा.
पर सच कहती हूँ मुझे भरोसा है
तुमपर खुद से ज्यादा
और अब हम एक हैं
ये है मेरा तुमसे वादा
सच कहती हूँ जो लिखती हूँ
तुम हो सच्चा प्यार मेरा
सच कहती हूँ जो लिखती हूँ.
सोनी राज,
मधेपुरा
बहुत सुंदर रचना ।
धन्यवाद....