मन के जौ
रथ बनायब
तें कोना
पूर्ण हेइत
मनोरथ।
मन ते विवेकहीन
होइत अछि।
मन ते कखनो
दिल्लीक लड्डू
बनारसक पान
लखनौ केर
कोठा पर
पहुँचैत अछि
बिना रोक-टोक
रोध- अवरोध।
आ ई जे
मनक वेगवतीक
प्रबल भाव
तकर प्रभाव
सद्यः सतबै
लगैत अछि
मन पर सवार
मनोरथी के
आ तखन
लागि जाइत अछि
प्राप्तिक हेतु
ओरियौन मे
मनक ओहि
निराकार भाव के
साकार
करबाक हेतु
आ हुअ
लगैत अछि
अनर्गल, अनीति
ओहि मनोरथी
मानुष सँ।।
रथ बनायब
तें कोना
पूर्ण हेइत
मनोरथ।
मन ते विवेकहीन
होइत अछि।
मन ते कखनो
दिल्लीक लड्डू
बनारसक पान
लखनौ केर
कोठा पर
पहुँचैत अछि
बिना रोक-टोक
रोध- अवरोध।
आ ई जे
मनक वेगवतीक
प्रबल भाव
तकर प्रभाव
सद्यः सतबै
लगैत अछि
मन पर सवार
मनोरथी के
आ तखन
लागि जाइत अछि
प्राप्तिक हेतु
ओरियौन मे
मनक ओहि
निराकार भाव के
साकार
करबाक हेतु
आ हुअ
लगैत अछि
अनर्गल, अनीति
ओहि मनोरथी
मानुष सँ।।
स्वाती शाकम्भरी
सहरसा
बहुत बढ़िया