सैकड़ो जानें ले लेना.
कहते हो खुद को खुदा के बन्दे,
कब सिखाया खुदा ने दर्द फैलाना|
जिहाद की बातें करते हो,
कुरान के कलमे पढते हो.
ना जान पाये कभी मतलब मजहब का,
खून की धाराएँ बहाये फिरते हो|
पर याद रखो अपने मंसूबो पर,
ना फतह कभी तुम पाओगे,
दाग दो चाहे गोलियाँ जितनी,
रूह–ए– पाक कभी न मिटा पाओगे|
बर्बरता यूँ बरसाने वाले,
खुदा जरुर ही इंसाफ करेगा.
आतंक व खौफ फैलाने वाले,
तेरे गुनाह कभी न माफ़ करेगा|
बस बहुत हुआ अब तेरा,
ये आतंक का सैलाब बिखराना,
अब सब एक हुए हैं, हाथ जुड़े हैं,
मिटेगा दहशत का हर अफसाना|
लाख कोशिशें कर लो तुम,
मानवता को ना मिटा पाओगे.
घड़ा भर लिया है तूने अपने पाप का,
अब कायनात से रुखसत हो जाओगे|
श्रेया वर्मा,
मधेपुरा
sunder rachna.
Shreya Verma ji your poem is very beautiful love to read this...post more poems like this.thanks!-indian matrimony