काश कि तुम जाम बन जाओ,
थक कर इंतजार करूं मैं जिसका
ऐसी कोई शाम बन जाओ
खबरों में खबर नहीं रहती
काश कि तुम अखबार बन जाओ
बेवजह ही बीत जाती है छुट्टियां,
जो बचपन याद दिलाएं
ऐसी कोई रविवार बन जाओ
पहले से शब्द नहीं आते अब जहन में
काश कि तुम खयाल बन जाओ
पोछ दे जो गलतियों को बीते कल से
ऐसी कोई रुमाल बन जाओ
बस सफर नजर आता है दूर तलक
काश कि तुम मकाम बन जाओ
दरवाजे और खिड़कियों के अलावा कोई हो जहां साथ
ऐसा कोई मकान बन जाओ
कोई पहचानता नहीं एक-दूसरे को यहां
काश कि तुम शहर बन जाओ
होने न दे इंसान को अलग जो इंसान से
ऐसी कोई गिरह बन जाओ
धर्म ईश्वर जाति वर्ण बेवजह हैं सब
काश कि तुम प्यार बन जाओ
इंसानियत हो जहां सबसे ऊपर
ऐसा कोई संसार बन जाओ
दब चुके हैं दंगों तले लोग यहां
काश कि तुम सरकार बन जाओ
आवाज ला दे जो सबकी जुबान पर
ऐसा कोई अधिकार बन जाओ
कैद क्यों हो बुर्कों मकानों और मर्दानों में
काश कि तुम हवा बन जाओ
सुबह शाम की खुराक में जो
सुधार दे रुढ़िवादिता को
ऐसी कोई दवा बन जाओ
अधूरे हैं हम अधूरी है ये दुनिया
काश कि तुम सच बन जाओ
सीमाएं सेना बारूद गोलियां न हो जहां
ऐसी कोई हकीकत बन जाओ
ऐसी कोई हकीकत बन जाओ.
गुंजन गोस्वामी, सिंहेश्वर
बेहतरीन।
Wah bahut khub Goswami jee... kya bolu mai mere pass tarif le liye words nhi mil rha
behtarin
हकीकत को उम्दा तरीके से पंक्तियों में सजाया गया!
हकीकत को उम्दा तरीके से पंक्तियों में सजाया गया!
हकीकत को उम्दा तरीके से पंक्तियों में सजाया गया!