उम्र-भर ज़िन्दगी कश्मकश में रही
क्या गलत क्या सही क्या करूँ क्या नहीं

बेरुखी बेबसी बेदिली बेकली
मैं गया हूँ बदल या बदल तुम गयी

मुद्दतों बाद तुमने जो कल बात की
बर्फ-सी उलझनें सब पिघल-सी गयी

रात दिन धूप बरखा जमीं आसमाँ
सब वही है मगर है नहीं सब वही

है किसी के लिए ज़िन्दगी मौत-सी
और किसी के लिए मौत भी ज़िन्दगी


अमन
सिंघेश्वर, मधेपुरा (बिहार)
9473517706
5 Responses
  1. शानदार...बेबसी बेक़ली बेदिली...कमाल।



  2. Aman Kumar Says:

    शुक्रिया अमरदीप जी।
    दो शेर आप सुन चुके हैं पहले।
    अब ग़ज़ल पूरी हुई।


  3. Aman Kumar Says:

    शुक्रिया मनीश (arav razz)
    😊


  4. Aman Kumar Says:
    इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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