क्या गलत क्या सही क्या करूँ क्या नहीं
बेरुखी बेबसी बेदिली बेकली
मैं गया हूँ बदल या बदल तुम गयी
मुद्दतों बाद तुमने जो कल बात की
बर्फ-सी उलझनें सब पिघल-सी गयी
रात दिन धूप बरखा जमीं आसमाँ
सब वही है मगर है नहीं सब वही
है किसी के लिए ज़िन्दगी मौत-सी
और किसी के लिए मौत भी ज़िन्दगी
अमन
सिंघेश्वर, मधेपुरा (बिहार)
9473517706
शानदार...बेबसी बेक़ली बेदिली...कमाल।
लाजवाब।।
शुक्रिया अमरदीप जी।
दो शेर आप सुन चुके हैं पहले।
अब ग़ज़ल पूरी हुई।
शुक्रिया मनीश (arav razz)
😊