इस दरिया में, अब कोई लहर तो नहीं है ।
ये खामोशी, तूफान का असर तो नहीं है ?

गमों को भुला दूँ ..कि फिर मुस्कुरा दूँ..
ये आसान इतना, सफर तो नहीं है 

जिसकी तमन्ना थी हमने सजाई ....
ये वो सुहानी सहर तो नहीं है 

किसी को भी गले लगाने से पहले,
देख लो, उसके हाथ खंजर तो नहीं है ।

बढ़ गया पाप है, इस हद अब धरा पर,
किसी को भी खुदा से कोई डर तो नहीं है।

जन्म लेंगे कई और गांधी, भगत सिंह...
ये जमीं हिन्द की, बंजर तो नही है ।

जो मिलोगे राह में तो, मुँह फेर लें हम,
नफरत तुझसे, इस कदर तो नहीं है ।

               
रचना भारतीय
मधेपुरा, बिहार।
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मन है बैचैन आज
क्योंकि हुआ ही है कुछ ऐसा
आज एक साथ दो बचपन
खो गए कहीं
खो गयी किलकरियाँ
हो गयी आंगन सूनी


कितना अजीब खेल है कुदरत का
साथ आये थे दुनियाँ में दोनों
साथ गए भी दोनों
धन के लोभी भेड़िए
खा गए दोनों को
इंसान के भेष में हैवान
जिसने ले ली मासूमों की जान
आज मानवता हुई है शर्मशार
दिल रो रहा है बार बार
मन है बेचैन आज
क्योंकि हुआ ही है कुछ ऐसा

ये कैसे जानवर हैं
जो हैं धन के लोभी
हैं खून के प्यासे भी
क्या बिगाड़ा था उन मासूमों ने
क्या इसलिए कि पहचान गए थे वो
क्या बच सकते हो ऊपर वाले की नजर से

तुम्हें मौत भी मिले अगर
सजा फिर भी बाकी ही रहेगी
क्योंकि तुमने किया ही है कुछ ऐसा
मन है बेचैन आज
क्योंकि हुआ ही है कुछ ऐसा.
(मध्यप्रदेश के सतना में जुड़वां भाइयों के अपहरण के बाद हत्या पर आधारित कविता, उन मासूम बच्चों को समर्पित)


- ज़फर अहमद
एम०ए०, बी०एड०
नालंदा खुला विश्वविद्यालय, पटना



पता: ग्राम-रामपुर डेहरू, पत्रालय-रहुआ
जिला- मधेपुरा (बिहार) 852116
मोबाइल/व्हाट्सएप्प-  9973765056
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जीवन है स्रोत खुशियों का
आशाओं की फुलझड़ियों का
सुन्दरता इसकी तुम देखो
पथ पर आगे बढ़ते जाओ.

माना थोड़ी सी खुशियाँ हैं,
पर है, थोड़ी खामोशी भी
है, दर्द अगर तो क्या हुआ?
थोड़ी है, खुशियों की मदहोशी भी.

पर हो न निराश दुखों से तुम
गम के सारे अवरोधों से तुम
जिस जीवन में तकलीफ नहीं
वह जीवन ही क्या जीवन है?

तुम तकलीफों से हारों मत
खुद को जीते जी मारो मत
क्या हुआ जो सपने टूट गए
खुशियों के पल जो रूठ गए.

गम का क्या है, आना-जाना
ऐसे ही खुशियाँ भी आएँगी
होंगे तेरे सपने पूरे
संघर्ष करो तुम जीतोगे
दुनियाँ देखेगी तुमको और
तुम जीत का जश्न मनाओगे. 
-मधु कुमारी, वारिसलीगंज, नवादा.
(सम्प्रति: सहायक, सिविल कोर्ट मधेपुरा)
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कहते हैं इस दुनियाँ में कुछ भी असंभव नहीं है. हम सब वो कर सकते हैं जो हमने अभी तक नहीं किया है और हम वो सब सोच सकते हैं, जो हमने अभी तक नहीं सोचा है. अर्थात सबकुछ हमारी सोच पर निर्भर करता है.

जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए सबसे पहले एक सकारात्मक सोच का होना सबसे जरुरी है. किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए चार चीजों का होना बेहद जरुरी है. वो चार चीजें हैं, एक लक्ष्य, कठिन परिश्रम, धैर्य और पूर्णतः समर्पण. यदि आपके पास ये चारों चीजें हों, तो आप निश्चित रूप से सफल होंगे. परन्तु इन चारों चीजों के अलावा भी एक ऐसी चीज़ है, जिसके बिना सफलता के द्वार तक पहुंचना असंभव है, और वो चीज़ है, स्वयं पर विश्वास. कई बार ऐसा लगेगा, मानो अब आप पूरी तरह हार चुके हों, सारे रास्ते बंद नज़र आयेंगे, मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा, परन्तु यही वो समय होता है, जब आपके धैर्य की परीक्षा होती है. यदि उस वक़्त आप खुद पर विश्वास करते हुए सारी मुसीबतों का डट कर सामना करते हैं, और उनको पीछे छोड़ते हुए आप अपने लक्ष्य की प्राप्ति में लगे रहते हैं, फिर आपको विजेता बनने से कोई नहीं रोक सकता. दुनिया की कोई भी ताकत आपको आपका लक्ष्य प्राप्त करने से नहीं रोक सकती. 

मशहूर कवि दुष्यंत कुमार की वो पंक्तियाँ याद दिलाना चाहूँगी:

“कौन कहता है कि आसमान में सुराख़ नहीं होता,
 एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों.”

दोस्तों, जीवन में सफलता प्राप्त करना इतना आसान भी नहीं होता. इसके मार्ग में अनगिनत बाधाएं भी आ सकती हैं. हो सकता है कि आपको सफलता के बजाय असफलता ही मिले. यह भी हो सकता है कि आपको लगातार असफलता ही मिले, जिससे आप निराशा के दलदल में डूब जाएँ और फिर हो सकता है, कि आप हार मानकर प्रयत्न करना ही छोड़ दें. परन्तु एक बात हमें हमेशा याद रखनी चाहिए कि असफलता ही सफलता की पहली सीढ़ी होती है. असफलता ही हमें यह सिखाती है कि, हमने कहाँ-कहाँ गलतियाँ की. यदि असफलता को ही हम अपना गुरु मान लें और उससे सीख लेकर अगली बार वो गलतियाँ न दुहरायें तो निश्चित रूप से सफलता हमारा वरण करेगी.

प्रख्यात कवि सोहनलाल द्विवेदी की मशहूर कविता का एक छोटा सा अंश पेश करना चाहूँगी जिसपर अमल करके आप जीवन में निश्चित रूप से सफल हो सकते हैं. 

 “असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो.
 क्या कमी रह गयी है देखो और सुधार करो.
 जब तक न सफल हो नींद चैन को त्यागो तुम 
 संघर्ष का मैदान छोड़कर मत भागो तुम
 कुछ किये बिना ही जयजयकार नहीं होती.
 कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.”

अपने सभी पाठकगण, जो जीवन में सफल होना चाहते हैं, उन्हें बस यही कहना चाहूँगी कि जीवन में चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, हमें प्रयत्न करना कभी नहीं छोड़ना चाहिए. पूरी मेहनत और लगन से किया गया काम कभी भी अधूरा नहीं रहता. सफलता उसी इंसान का वरण करती है जो किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानता और अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहता है.                                                       
-मधु कुमारी, वारिसलीगंज, नवादा.
(सम्प्रति: सहायक, सिविल कोर्ट, मधेपुरा)

बाथरूम के नल को तेज़ चलाकर ..
उस पानी के गिरते शोर में अगर
तुम अपने आंखों से गिरते 
पानी की आवाज़ को
बंद करने की कोशिश कर रहे हो ...
तो हां तुमने किसी को बेइंतहां चाहा है...

घंटों चुपचाप अकेले बैठे रह जाते हो..
और ताकते हो खिड़की के बाहर की दुनिया को ..
और..पेड़, पौधे, लोग, आकाश, चांद, सितारें..
सब तुम्हें खुद के जैसी लाश लगने लगे
तो हां तुमने किसी को बेइंतहां चाहा था!

गलती से उसकी तस्वीर तुम्हें
तुम्हारे फोन के छिपे हिस्से में
दिख जाती है..
और वो लम्हा तस्वीर से निकलकर ..
तुम्हारे आंखों के सामने खुद को
दोहराने लगता है..
तुम्हें चिढ़ाने लगता है...
तो हां तुमने किसी को बेइंतहां चाहा था...

 
जब तुम किसी भी दिशा में देखो ..
जब सड़कों पर..
तुम्हें किसी की आंखें उसके जैसी लगे ..
कभी बाल तो कभी उसके कपड़े..
और तुम्हें आभास हो कि बस..
वही तुम्हारे सामने है...
तुम्हारी धड़कन रुक जाएं ...
और जब तुम्हें मालूम हो कि
यह तुम्हारा भ्रम है...
और उसी सड़क पर घुटनों के बल बैठ
बच्चों की तरह रोने को
मजबूर हो जाओ तुम...
तो समझ लेना ...
कि तुमने किसी को बेइंतहां चाहा है...

जब बिना किसी के बताए तुम्हें
उसके अच्छे बुरे हाल का आभास हो...
कुछ बुरा हो रहा है उसके साथ...
तुम्हें एहसास हो...
तो समझ लेना कि किसी को
बेइंतहां चाहा था तुमने ...

जब तुम त्योहारों में और बेचैन हो जाओ...
दिल करें कि सब तुम्हें अकेला छोड़ दें...
जब दीवाली के दीये तुम्हें
अंधेरा दिखाने लगे ..
होली के रंग भड़काने लगे ..
तो समझ लेना तुमने
किसी को बेइंतहां चाहा था..

जब मां के पराठे गले से ना उतरे ..
जब सारी पसंद नापसंद में बदल जाए..
जब तुम भूलने लगो कि
तुम्हारे कमरे में एक आईना है..
और गलती से कभी
देख भी लो उस आइने में..
और ख़ुद के पीछे वो भी बाहें फैलाए नजर आए ..
तो समझ लेना कि तुमने किसी को ..


चाहे दिन, महीने या साल गुज़र जाएं...
उसके नाम के ज़िक्र से आज भी
तुम्हारा दिल तुम्हारे सीने के बाहर निकलकर
तुम्हें लाश बना देता है...
हजारों की भीड़ में भी तुम्हें
तन्हा कर देता है..
खुशियों को भी अपनी याद से
मातम में बदल देता है..
तो समझ लेना..तुमने..

जब तुमसे ज्यादा तुममें
वो रहने लगे तो ..
जब तुम ये समझने में असफल हो जाओ...
तुममें वो है या उसमें तुम ..
जब तुम्हें यकीन हो जाएं...
कि वो तुमसे कभी दूर नहीं हो सकता..
तो समझ लेना ...
तुमने किसी को बेइंतहां चाहा था.

अंशु प्रिया
बिहारी करेजा
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