इस
दरिया में, अब कोई लहर तो नहीं है ।
ये खामोशी, तूफान
का असर तो नहीं है ?
गमों को भुला दूँ ..कि फिर मुस्कुरा दूँ..
ये आसान इतना, सफर तो नहीं है ।
जिसकी तमन्ना थी हमने सजाई ....
ये वो सुहानी सहर तो नहीं है ।
किसी को भी गले लगाने से पहले,
देख लो, उसके
हाथ खंजर तो नहीं है ।
बढ़ गया पाप है, इस हद अब धरा पर,
किसी को भी खुदा से कोई डर तो नहीं है।
जन्म लेंगे कई और गांधी, भगत सिंह...
ये जमीं हिन्द की, बंजर तो नही है ।
जो मिलोगे राह में तो, मुँह फेर लें हम,
नफरत तुझसे, इस कदर
तो नहीं है ।
रचना
भारतीय